Saturday 1 February 2020

निर्मला का ‘निर्मल बजट’

आज देश की पहली वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने दूसरा बजट पेश किया। हर वर्ष सरकारें अपने बजट को जन प्रतिनिधियों के सम्मुख रखती हैं। बजट सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों का आईना होता है अतः जन-जन का ध्यान इस पर केंद्रित होता है। 

इस साल के आम बजट में वित्तमंत्री ने लगभग हर वर्ग को खुश करने के लिये घोषणा की। उन्होंने बजट पेश करते हुए कहा कि भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गई है। उन्होंने जीएसटी के सरल स्वरूप की घोषणा की, जो कि अप्रैल 2020 में पेश किया जायेगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति लाने की घोषणा की उसके लिये 99,300 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। देश के युवाओं के लिए नया उद्योग खोलने के द्वार खुल गये हैं। इसके लिये ‘निवेश मंजूरी प्रकोष्ट’ बनाया जाएगा। सरकार 2025 तक 100 नए एयरपोर्ट खोलने जा रही है। देश को जल संकट से मुक्त करने के लिये सरकार 100 जिलों के लिये एक विस्तृत योजना ला रही है। सरकार ने बैंकों में जमा पैसे की गारंटी 1 लाख से बढ़ाकर 5 लाख कर दी है। तेजस जैसी और रेलगाड़ियां चलाई जाएंगी। 2024 तक देश के सभी जिलो में जन औषधी केंद्र बनाये जाएंगे। सरकार ने किसानों को 15 लाख करोड़ कर्ज देने की घोषणा की है। 5 लाख की आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। अनूसूचित जातियों और पिछड़ा वर्ग के लिए 85000 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की गई है। यह कुछ चुनिंदा घोषणायें हैं। बजट में बहुत कुछ कहा गया है, बहुत कुछ किया गया है और बहुत कुछ होने वाला है।

फिर साल भर तक हर मंत्री अपने-अपने विभाग के लिये जब-तब लगभग हर समारोह में एक नई घोषणा करता रहेगा। यहां तक कि विभाग किसी मुद्दे पर क्या करने वाला है, इसकी पूर्व घोषणा मंत्री करते रहेंगे। पारदर्शिता का यह स्तर चिंतनीय है। अध्यादेशों और आदेशों के माध्यम से लगभग साल भर कीमतें बढ़ाई-घटाई जाती रहेंगी। इससे वार्षिक बजट युक्ति संगत नहीं होते है। 

जो बजट प्रस्तुत किये जाते हैं उनमें मौलिकता का सर्वथा अभाव रहता है। एक ढर्रे पर लगभग पुनरावृत्ति और वह भी राजनैतिक, पार्टीगत हितों को लेकर होती है। राष्ट्रगत हितों पर आधारित बजट कम बन रहे हैं। आम जनता समझ लेती है कि चुनाव पूर्व वर्ष में छूट मिलेगी और जीतने के बाद कड़ा बजट आयेगा। यह हास्यास्पद है। 

कमजोर वर्गों में धनाढ्य व्यक्तियों पर कराधान

किसी वित्त मंत्री को कर से प्राप्त आय बुरी नहीं लगती है पर कई वर्गों को विशेष छूट केवल जातिगत या व्यवसाय गत आधार पर प्राप्त है। इन वर्गों के धनाढ्य परिवार ज्यादातर इन छूटों का विभिन्न योजनाओं में लगातार व्यर्थ ही लाभ उठा रहे हैं पर किसी वित्त मंत्री ने ऐसे धनाढ्य परिवारों पर कराधान करने का सोचा ही नहीं। कम से कम उन्हें देय छूट/सब्सिडी समाप्त की जा सकती है। 

बड़े किसानों पर कराधान

इसी क्रम में कृषि आय से होने वाली छूट का लाभ बड़े फार्महाउसों के मालिकों को भी मिल रहा है। जरूरी है कि अब एक स्तर निर्धारित किया जाये, जिससे बड़े किसानों पर सब्सिडी समाप्त हो एवं कराधान प्रारंभ हो। 
प्राकृतिक जल के, औद्योगिक प्रयोग हेतु टैक्स
कराधान के नये स्त्रोत हर वित्त मंत्री को अपनी मौलिकता से ढूंढऩे चाहिये, जमीन से पंपों की सहायता से बेहिसाब पानी निकाला जा रहा है, जिस पर टैक्स लगाया जाना उचित होगा, कम से कम ऐसे पानी के औद्योगिक उपयोग पर। 

पालीथिन के उत्पादों पर कर

पालीथिन की रिसाईकिलिंग को बढ़ावा देना चाहिये टैक्स कम करके, तो दूसरी ओर पालीथिन की सबसे लोकप्रिय एवं सस्ती, पर सबसे ज्यादा घातक उत्पाद पालीथिन कैरी बैग पर उच्च दरों का टैक्स लगाकर उत्पाद रोकना आवश्यक है। इनके विकल्प के रूप में पुराने अखबार, पुरानी कापियों की रद्दी से बनी थैलियां लोकप्रिय कुटीर उद्योग है एवं रोजगार को बढ़ावा देने वाली हैं। 

ये मात्र कुछ उदाहरण हैं, जो मेरी सोच के परिणाम हैं, जब विषय के विशेषज्ञ, आर्थिक विशेषज्ञ, वित्तमंत्री गहन चिंतन एवं मौलिक सोच सकारात्मक करें तो ऐसे ही ढेरों बिन्दु सामने आयेंगे तो दूसरी ओर यह भी जरूरी है कि नये नियम बनाते समय बहुत सोच समझकर कार्यवाही हो। 

आशय यह है कि मौलिक चिंतन बजट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर जरूरी हैं, जिसका इन दिनों अभाव परिलक्षित हो रहा है।