Tuesday 18 February 2020

पारद शिवलिंग की स्थापना से होती है दैवीय शक्ति की प्राप्ति

21 फरवरी को महाशिवरात्रि का महापर्व है। इस दिन श्रद्धालु भक्तिभाव से भगवान शिवजी की आराधना करते हैं। महाशिवरात्रि को अपने सामथ्र्य अनुसार श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। कोई पत्थर के शिवलिंग की पूजा करता है तो कोई भक्त मिट्टी के शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा-अर्चना करता है। इन सबके बीच पारद के शिवलिंग का अलग ही महत्व है। पारद शिवलिंग की स्थापना एवं आराधना से मनुष्य इस जीवन मे भौतिक सुखभोग कर स्वर्ग में निवास करता है। महाशिवरात्रि के दिन  पारे का शिवलिंग बनवाकर अपने घर पर विधि-विधान से स्थापित करने से मानवीय एवं दैविक शक्ति प्राप्त होती है। वैसे समस्त देवताओं में  सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान शिव है इसलिए उनका नाम आशुतोष भी है। शिवजी त्याग, सादगी, सरलता के साक्षात स्वरूप है। भोलेनाथ, अवढर दानी, अवधूत, परमवैरागी, महान योगी, महान दानी, कृपालु देवता, उदारता की सजीव प्रतिमा है। शिवलिंगों के रूपाकार में विभिन्न प्रतिमाओं का प्रभाव और प्राचीनता, यह सब इस तथ्य के प्रमाण है कि मानव-सभ्यता के आदि काल से ही शिवजी पूज्य रहे है। 
पारद शिवलिंग की यह पूजा एवं साधना, तंत्र साधना ही मानी जाती है। आप कहीं से भी शुद्घ, सिद्घ पारद शिवलिंग प्राप्त कर उस पर महाशिवरात्रि के दिन नियमित रूप से बिल्वपत्र चढावे तथा भगवान शिव के पंच्चाक्षर मंत्र ऊँ नम: शिवाय: का  11 माला जाप कर दुग्ध से अभिषेक करे। आश्चर्यजनक फल उसी क्षण से साधक को मिलने लग जायेंगे।  प्राण प्रतिष्ठा व 16 संस्कार युक्त पारद शिवलिंग होना चाहिये। शुद्घ पारे से तांत्रिक साधना द्वारा पारद शिवलिंग का निर्माण किया जा सकता है । भगवान शिव के दो रूप तत्काल सिद्घि प्रदान करने वाले है। ये रूप है पारद शिवलिंग, और जलमग्न शिवलिंग। काले पत्थर में जल का होना और उसके आधार में  उपस्थित शिवलिंग महान फल प्रदान करने वाला होता है। अस्तु मेरा मुख्य बिन्दु पारद शिवलिंग है  फिर भी जलमग्न शिवलिंग के दर्शन का महत्व धर्म शास्त्रों में कम नहीं है।

''शताश्व मेघेन कृतेन पुप्यंगोकोटिमि:, स्वर्ण सहस्प्रदानात्ï"।
''नृणां भेवत्ï जलमग्नदर्शन मेन: यत्सर्वतीर्थ पु कृतामिषकात्"॥ 

अर्थात जो पुण्य 100 अश्वमेघ यज्ञ करने से, करोड़ों गोदान करने से, 1000 तोले के स्वर्ण दान करने से, तथा सभी तीर्थो के दर्शन सम्पन्न करने से  प्राप्त होता है वह पुण्य जलमग्न शिवलिंग के दर्शन मात्र से सहज में ही प्राप्त हो जाता है। घर पर स्थापना की लीला ही अलग है। इसी प्रकार पारद शिवलिंग का महत्व है।

''केदार दीनी लिंगनि, पृथित्यां यानि थानिचित्ï"।
''तानि दृष्टंवासु यत्पुण्यतत्पुण्यं रसदर्शनात्ï"॥ 

अर्थात हिमालय में केदारनाथ आदि पवित्र तीर्थ स्थलों से लेकर पृथ्वी तल पर स्थित समस्त शिवलिंग तथा सम्पूर्ण भारत वर्ष में द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन से जो पुण्य मिलता है वही पुण्य फल पारद निर्मित शिवलिंग की घर में विधि-विधान से स्थापना व दर्शन मात्र से श्रावण माह एवं शिवरात्रि में सहज रूप से प्राप्त हो जाता है।

''रसविधा, पराविधा, त्रैलोक्ये पिं च दुल्र्लभया"।
''भूक्ति-मुक्ति करी यास्यात्ï, तस्मात्ï यत्नेन गोपयेत"॥ 

अर्थात जो पुण्य हजार स्वनिर्मित पार्थिव शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है उससे करोड़ों गुना फल पारद शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। रसविधा ही पारदविद्या कहलाती है। उड्ïडीश तंत्र भी यही कहता है कि पारद शिवलिंग भोग, मोक्ष, ऐश्वर्य का प्रदाता है।  अत: मनुष्य को चाहिये कि श्रावण माह एवं महाशिवरात्रि पर पारद शिवलिंग  स्थापित कर पूजन करे।

''रसेन्द्र पारद: राज सूत: सूतराजच्च"।
''शिवतेजो रस षप्त नामन्येनं रहस्य नं "॥ 

अर्थात रसेन्द्र, पारद, सूत, सूतराज, सूतक, शिव तेजरस  ये सात नाम पारद के है। पारे से शिवलिंग बनाया जाय तो अपने आप में अद्ïभुत तेजस्वी तथा वर-दायक शिवलिंग बनता है।  सही अर्थो में ऐसे शिवलिंग को ही पारदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। जहां पारद शिवलिंग होता है वहां केवल मात्र पारदेश्वर शिवलिंग ही नहीं होता अपितु भगवती लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, कुबेर भी साथ में स्थापित हो जाते है। 
ऐसे घर में लक्ष्मी पूर्ण रूप से  चैतन्य होकर स्थापित हो जाती है और धन, धान्य, भूमि, भवन, कीर्ति, यश, दीर्घायु, पुत्र, पौत्र, वाहन और सम्पूण सिद्घियों के  साथ लक्ष्मी का निवास उसके घर में होता है। स्वयं भगवान शिव कहते है...
'पारदेश्वर स्थापित्यं लक्ष्मी सिद्घि तद्ï गृहें"।
''धनं धान्यं धरा पौत्रं पूर्ण सौभाग्य वै नर:"॥ 

अर्थात जिसके घर में  आठों संस्कारों से युक्त पारद से निर्मित  पारदेश्वर शिवलिंग स्थापित होता है  वहां मेरे साथ-साथ कुबेर, विष्णु, लक्ष्मी, सौभाग्य, अवश्य मिलता है। वशिष्ठ  जी ने अपने ग्रन्थ में कहा...

''पारदेश्वर स्थापित्यं सर्व पाप विमुच्चते"।
''सौभाग्यं सिद्घि प्राप्यन्ते पूर्ण लक्ष्मी नर:"॥

अर्थात चाहे व्यक्ति ने कितने ही पाप किये हो, चाहे उसके जीवन में पूर्व जीवन कृत दोष हों  चाहे विधाता ने उसके जीवन में पूर्ण सौभाग्य लिखा ही नहीं हो फिर भी यदि वह अपने घर में पारदेश्वर शिवलिंग को स्थापित करता है तो पूर्ण सौभाग्यशाली बन जाता है। एक अन्य स्थान पर महर्षि याज्ञवल्क्य ने भगवान पारदेश्वर के बारे में कहा है...

''किं दारिद्रयं दुख:पाप किं रोग शोकच:।
''पारदेश्वर पदं साक्षात लक्ष्मी पूर्ण सौभाग्य प्राप्यते"॥ 

अर्थात मुझे समझ में नहीं आता है कि मनुष्य के जीवन में दरिद्रता क्यों है। वह दु:खी संतप्त और पीडि़त क्यों है। उसके जीवन में अभाव व बाधाएं क्यों है जबकि उसके पास आठों संस्कार युक्त पारद से निर्मित भगवान पारदेश्वर है। स्वयं माता लक्ष्मी जी ने कहा कि...

''पारदेश्वर सिद्घि वै साफल्यं लक्ष्मी च श्रिय"।
''कनक वर्षा, धनं पौत्र सौभाग्य वै नर:"॥ 

अर्थात इस कलियुग में मानव जीवन की पूर्णता, सम्पन्नता श्रेष्ठता और सफलता का एक मात्र उपाय ''पारद शिवलिंगÓÓ प्राप्त कर महाशिवरात्रि पर स्थापित करना है। रावण ने पारद शिवलिंग का निर्माण कर उससे अपनी नगरी को स्वर्णमयी बनाकर यह सिद्घ कर दिया था कि पारदेश्वर की साधना से सब कुछ सम्भव है। स्वयं शिव भक्त रावण ने कहा है...

''पारदेश्वर महादेव स्वर्ण वर्षा करोति य्ï"।
''सिद्घिदं ज्ञानदं मोक्ष पूर्ण लक्ष्मी कुबेर य:"॥ 

अर्थात स्वयं रावण ने कहा है कि मैने यह अनुभव किया है कि पारदेश्वर स्थापना व पूजन और साधना के आगे अन्य सभी साधनायें, प्रयोग व उपाय सभी तुच्छ है। मैंने केवल महाशिवरात्रि पर पारदेश्वर की स्थापना व पूजन कर पारद के ही माध्यम से स्वर्ण वर्षा सिद्घसूत से स्वर्ण निर्माण रसायन क्रिया कर लंका नगरी को स्वर्ण बनाने की प्रकिया सम्भव की थी। रसार्वण तंत्र व शिवपुराण में लिखा है ''धर्मार्थकाम मोक्षाख्या पुरूषार्थश्चतुर्विधा"।
''सिध्यंति नात्र सन्देहो पारद रस राज प्रसादत:"॥ 

अर्थात जो मनुष्य पारद शिवलिंग की महाशिवरात्रि एवं  श्रावण माह में एक बार  भी पूजा कर लेता है उसे इस मानव जीवन में ही अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, चारों पुरूषार्थो की प्राप्ति हो जाती है। 

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