Sunday 1 March 2020

कैसे करें खाद्य पदार्थों के पौष्टिक तत्वों की रक्षा

हमारे घरों में रसोई घर की मालकिन ज्यादातर महिलायें होती हैं। आज भी उनके द्वारा भोजन पकाने के वर्षों पुराने अवैज्ञानिक तरीके ही अपनाये जा रहे हैं। बड़े-बूढ़ों की वाहवाही लूटने के लिये तथा भोजन खूब स्वादिष्ट (Food tasty) फूड टेस्टी बनाने के लिये मिर्च-मसालों का खुलकर प्रयोग किया जाता है। घी अथवा तेल में खाद्य पदार्थों को तलकर आकर्षक रंगदार व सुगंधित बनाना एक फैशन सा बन गया है।

भोजन (Food) का उद्देश्य मात्र पेट भरना ही नहीं होता। हमारे भोजन से शरीर के लिये आवश्यक शक्तिवद्र्धक तत्वों का प्राप्त होते रहना भी अति आवश्यक है। यह तभी संभव है, जब भोजन पकाते समय वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर खाद्य पदार्थों के पौष्टिक तत्वों की रक्षा की ओर विशेष ध्यान दिखा जाए। रंग, गंध और तनिक स्वाद का मोह त्यागकर भोजन की पौष्टिकता बचाई जा सकती है।

सब्जियां पकाते समय रखें सावधानी (Be careful while cooking vegetables)

सब्जियों को ही लें, हमारे रसोई घरों में गृहणियां इन्हें खूब पकाकर मुलायम बनाने में ज्यादा विश्वास रखती हैं। सब्जियों को मंद आंच पर पकाना लाभदायक रहता है। तेज आंच पर अधिक पकाने पर उनमें पाये जाने वाले विटामिन 'बी' और 'सी' नष्ट हो जाते हैं। सब्जियों (Vegetables) को केवल उतना ही पकाया जाना चाहिये, जिससे वे आसानी से चबाई जा सकें व सुपाच्य बन जाएं। सब्जियों (Vegetables) का अपना एक विशेष जायका और खुशबू होती है।  अधिक पकाने पर सब्जियों का अपना जायका नष्ट हो जाता है। शेष रह जाता है मात्र मसालों का स्वाद।

दो मिश्रित सब्जियां (Vegetables) पकाने में विशेष सावधानी की जरूरत रहती है। आलू-टमाटर, आलू-गोभी, आलू-पालक, आलू बैंगन, आलू-गाजर में आलू देर से उबलने वाली सब्जी है। इसके साथ डाली गई सब्जी पहले उबल जाती है। इस प्रकार की मिश्रित सब्जी (Vegetables) बनाने पर दोनों को एक साथ चूल्हे पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिये। देर से उबलने वाली सब्जी को पहले डालना चाहिये। इससे दोनों के पकने का समय एक हो जायेगा तथा शीघ्र उबलने वाली सब्जी की पौष्टिकता बचाई जा सकती है। ढक्कन चढ़ाकर मंद आंच पर पकी सब्जी में पौष्टिक तत्व सुरक्षित रह जाते हैं। अधिक पानी डालकर भी सब्जी (Vegetables) नहीं पकाई जानी चाहिए। सब्जियों में अपना पानी होता है। भाप द्वारा उस पानी से पकाई गई सब्जी सर्वाधिक पौष्टिक होती है।

बाजार अथवा खेत से लाई गई सब्जी (Vegetables) को धोकर पकाना तो आवश्यक होता ही है क्योंकि उन पर जमीं गर्द, कीटनाशक दवाओं व कीटाणुओं से बचाव जरूरी है। लेकिन इन्हें छीलने अथवा काटने से पूर्व धो लेना चाहिए। छीलने अथवा चीरने के बाद धोने से उनके विटामिन और लवण अधिकांशत: पानी में घुल सकते हैं।

सब्जियों (Vegetables) के अतिरिक्त दूध, दालें व दूसरे पदार्थ भी ढंककर पकाने में अधिक लाभदायक होते हैं। दूध को लेकर एक भ्रांति यह है कि इसे उबालकर खूब गाढ़ा बनाना लाभदायक माना जाता है। वास्तव में दूध को अधिक उबालने पर उसके खनिज लवण नष्ट हो जाते हैं। दूध के पौष्टिक तत्वों को बचाने के लिये जरूरी है कि इसे ढंककर उबाला जाए। मंद आंच पर मात्र एक उबाल पर्याप्त रहेगा।

दालों में होता है प्रोटीन (Pulses contain protein)

दाल (Pulses) के छिलकों में लवण और प्रोटीन मुख्य अंश होते हैं, लेकिन अरहर की दाल में प्रोटीन के तत्व नहीं होते। ऐसी दालों को मिश्रित बनाया जाना चाहिए। प्रोटीन की दृष्टि से चना सर्वोत्तम होता है। चने और मूंग को अंकुरित कर पकाने से अधिक विटामिन 'सी" और 'बी" प्राप्त किये जा सकते हैं। कुछ दालों (Pulses) में हरे पत्ते वाली मिश्रित सब्जी पकाने से दाल की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

हमारे यहां भोजन पकाते समय चावलों से मांड़ निकालने की परम्परा है। इस तरह घुलनशील पोषक तत्व मांड़ के साथ  बह जाते हैं। शेष जो कुछ बचता है उसका उद्देश्य मात्र पेट भरना ही रह जाता है। चावलों में पाई जाने वाली पौष्टिकता बचाने की सर्वोत्तम विधि यह है कि इनमें पकाने के लिये उतना ही पानी डाला जाए जितना आवश्यक हो। शाक-सब्जी अथवा दाल मिश्रित खिचड़ी बनाने से चावलों के पौष्टिक गुण और अधिक बढ़ जाते हैं।

सब्जियों के छिलके भी होते हैं फायदेमंद (Vegetable peels are also beneficial)

सब्जी (Vegetables) के छिलकों में विटामिन ए बी तथा सी होते हैं। कुछ एक सब्जियों (Vegetables) के छिलकों को निकालना भले ही हमारी मजबूरी होती है। फिर भी कुछ एक सब्जियां ऐसी हैं, जिनके छिलके सुपाच्य होते हैं, लेकिन उन्हें मात्र फैशन के वश अथवा सभ्य कहलाने के लिये बाहर फेंकते हैं। संभव हो तो छिलकों समेत सब्जी का प्रयोग करें। इससे पौष्टिक तत्व प्राप्त किये जा सकते हैं।

तेल अथवा घी में कुछ एक सब्जियों (Vegetables) को भूनने तथा तलने की हमारे यहां परंपरा है। तलने अथवा भूनने से यह पदार्थ आकर्षक व स्वादिष्ट बन जाते हैं, लेकिन साथ ही दुष्पाच्य भी बन जाते हैं। मकई, आलू, शक्करकंद, गेहूं को आग पर भूनकर खाना लाभदायक होता है क्योंकि इनके पौष्टिक द्रव्य अंदर ही अंदर सूख जाते हैं।

भोजन मंद आंच पर पकाना चाहिए (Food should be cooked on low heat)

फिलहाल भोजन (Food) 'फूड' पकाने की ऐसी कोई विधि नहीं, जिससे पकाये जाने वाले पदार्थों के सम्पूर्ण गुणों को बचा लिया जाये। केवल मंद आंच पर पकाना व कम उबालना ही आंशिक बचाव हो सकता है। अत: शरीर के लिये वांछित आवश्यक तत्वों की आपूर्ति के लिये भोजन के साथ कुछ कच्चे फल अथवा कच्ची सब्जियां भी सम्मिलित कर ली जायें तो बेहतर रहेगा। गाजर, मूली, केला आदि जो भी मौसमानुसार उपलब्ध हों, अवश्य लिये जाने चाहिये। अचार और मुरब्बे की अपेक्षा प्रत्येक भोजन के साथ खटाई का प्रयोग लाभदायक रहता है। इससे विटामिन 'सी' की पर्याप्त आपूर्ति हो जाती है। तले हुये पदार्थ चुस्ती की अपेक्षा आलस्य का कारण बनते हैं। इनमें विटामिन तथा प्रोटीन तत्वों का अभाव भी रहता है। पाचन तंत्रों को अधिक शक्ति व्यय करनी पड़ती है। यही कारण है कि इन्हें खाने के बाद शीघ्र भूख नहीं लगती, कब्ज हो जाता है। ऐसे पदार्थों के प्रयोग से परहेज बेहतर रहेगा। भोजन को इतना अवश्य पका लेना चाहिये जिससे इनके अंदर जमा मांड (Starch) (स्टार्च) स्वतंत्र होकर भोजन में घुल जाए। अनाज के दानों (Grain grains) पर जो सार पदार्थ होता है, वह केवल पकाने पर ही फटता है। अत: भोजन को ठीक से पकाना भी जरूरी है।

प्राचीन परम्परा भी है फायदेमंद (Ancient tradition is also beneficial)

रोटी (Roti) को चूल्हे से निकालकर चुपड़ देना केवल धनाढ्य होने का प्रतीक नहीं, इसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं। जितने भी जहरीले जीव हैं, इनके लिये चिकनाई पदार्थ विष के समान होते हैं। मक्खी घी के निकट नहीं आती। प्लेग के कीटाणु घी से नष्ट हो जाते हैं। अत: रोटी को चुपडऩा उसे कीटाणुओं के दुष्प्रभाव से मुक्त करना मुख्य उद्देश्य है। वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध किया जा चुका है कि गोबर में कीटाणुनाशक गुण होते हैं। हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी चूल्हे-चौके को गोबर से लीपने के पीछे उसे कीटाणु मुक्त करना ही प्रथम ध्येय होता है। आज भी कुछ माताएं दूध पीकर बालक को बाहर नहीं जाने देतीं। जिद करने पर उसे थोड़ी सी राख चटा दी जाती है। दूसरी जगह दूध भेजने पर आज भी गृहणियां कहीं-कहीं दूध के बर्तन में कोयला डाल देती हैं। इसके पीछे छुपे वैज्ञानिक आधार से भले ही गृहणियां अनभिज्ञ हों, लेकिन कोयले में कार्बन गैस होती है जो दूध को कीटाणुओं से मुक्त रखती है।

आज की तेज रफ्तार जिन्दगी में इतना समय किसके पास बचा है कि भोजन संबधी इन बारीक बातों पर ध्यान दिया जाय। फिर भी शरीर रूपी जिस मशीन के सहारे हम सारा दिन अपने दायित्वों को पूरा करने में लगे रहते हैं उसे चुस्त-दुरूस्त रखने के लिये थोड़ा समय निकाल लिया जाये तो यह उनके अपने हित में है। स्वस्थ व सुन्दर बने रहने के लिये पौष्टिक भोजन (Nutritious food) न्यूट्रीटियश फूड महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जरूरी नहीं कि कीमती पदार्थ ही पौष्टिक होते हैं। सस्ते व सरल-सुलभ पदार्थों को पकाने व उनकी पौष्टिकता बचाने संबंधी ज्ञान भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अत: स्वस्थ व सुन्दर बने रहने के लिये अपने भोजन की पौष्टिकता बरकरार रखना अनिवार्य है।

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