Sunday 9 February 2020

एकाग्रता ही सफलता का मूल मंत्र है

अपने कार्य अथवा लक्ष्य प्राप्ति में सफलता (success) उन्हें ही मिली है जो एकाग्रचित  (Concentration) होकर अपने कार्य में लगे रहे एवं जिन्होंने कार्य सिद्घि को ही अपनी पूजा समझा। मां सरस्वती के एक हाथ में माला एवं एक हाथ में है पुस्तक। लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरन्तर चौबीसों घंटे सब कुछ भूलकर ध्यान मग्न होकर अपनी कार्य सिद्घि के लिए तन्मय होने का प्रतीक है माला। ज्ञान की प्रतीक है पुस्तक। सफलता प्राप्त करने वालों की घटनाओं से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। सफल व्यक्ति की जीवन पद्घति में एकाग्रता (Concentration) एवं निरंतर प्रयास ही लक्ष्य प्राप्ति का मूल मंत्र रहा है।


सफलता के लिये साधना है जरूरी

ध्यान साधना (Meditate) के अनेक उदाहरण सामने आते हैं। साधना में व्यक्ति किस तरह खो जाता है उनके बारे में पढ़कर सुनकर आश्चर्य होता है। ऐसा ही एक उदाहरण है वाचस्पति पंडित का,जिन्होंने ब्रह्मसूत्र की रचना की। वाचस्पति पंडित का विवाह हो गया। ब्रह्मसूत्र की टीका लिखने मेें ध्यान मग्न हो गये, सब कुछ भूलकर। पत्नी उनके भोजन पानी एवं अन्य सभी व्यवस्थाएं कर देती। निरंतर चलता रहा उनका लेखन। कभी किसी ओर ध्यान नहीं गया। ब्रह्मसूत्र की टीका पूरी होती है, लेखक की साधना पूर्ण हुई। प्रातः होश आया। देखा एक प्रौढ़ महिला दीपक में तेल डालकर जा रही है। उत्सुकता हुई उस उपकारिणी महिला के बारे में जानने की, जो लम्बे अर्से तक इस साधना की सहभागी बनी रही। परिचय जानने पर महिला ने सकुचाते हुए कहा मैं आपकी धर्मपत्नी हूं महाराज। पंडितजी स्तब्ध रह गये। उन्हें अपने परिणय  सम्बन्ध का स्मरण आया। लक्ष्य साधना में विवाह, पत्नी, वंश वृद्घि किसी का स्मरण नहीं रहा। अब वंश वृद्घि की उम्र ही नहीं रही। पत्नी का नाम भी ध्यान में नहीं था। नाम पूछा। पत्नी का नाम धमती है- यह जाना। उन्होंने अपनी टीका साधना का नाम दिया ’’धमती’’। आज दोनों पति पत्नी उसी नाम से जाने जाते हैं। लक्ष्य प्राप्ति की सफलता का नाम ही है-धमती।

ध्यानमग्न होकर सफलता प्राप्त करना

लक्ष्य प्राप्ति (Goal attainment) के लिए ध्यानमग्न होकर सफलता प्राप्त करने वाले का एक और उदाहरण है अर्जुन। गुरू द्रोणाचार्य कौरव एवं पाण्डव बन्धुओं को तीर साधना का प्रशिक्षण दिया करते थे। एक दिन उन्होंने पेड़ पर बैठी एक चिडिय़ा को अंकित कर के कहा चिडिय़ा की आंख का निशाना साधना है। सभी से फिर यह जानना चाहा कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है। किसी ने कहा मुझे पूरा पेड़ और उस पर बैठी चिडिय़ा दिख रही है। किसी ने कहा डाल सहित उस पर बैठी चिडिय़ा दिखाई दे रही है। किसी ने कहा चिडिय़ा दिख रही है। पर अर्जुन ने कहा उसे चिडिय़ा की सिर्फ आंख ही दिखाई दे रही है। वही अर्जुन लक्ष्य बेधन में सबसे अव्वल रहा। द्रोपदी स्वयंवर में मछली की आंख बेधन में इसीलिए उसे सफलता (success) मिली।

हमारे सामने गुरू भक्त एकलव्य का दृष्टान्त भी है। द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाने में अपनी असमर्थता प्रकट कर दी पर वह धनुर्धर बनना चाहता था। उसने मिट्टी की गुरू प्रतिमा बनायी एवं निरंतर एकाग्रचित होकर अभ्यास में लगा रहा। एक बार एक भोंकते हुए कुत्ते का मुंह उसने वाणों से भर कर बंद कर दिया पर कुत्ते के मुंह में किसी वाण का स्पर्श न हुआ। द्रोणाचार्य यह चमत्कार देखकर विस्मृत हो गये। 

आइन्सटीन की सफलता का भी मूल आधार था उनकी ध्यान-साधना

विश्व प्रसिद्घ वैज्ञानिक आइन्सटीन (Einstein) की सफलता का भी मूल आधार था उनकी तन्मयता एवं ध्यान-साधना (Meditate)। एक बार वे अपनी प्रयोगशाला में किसी गंभीर समस्या में लगे हुए थे। भोजन का समय हुआ। उनकी धर्मपत्नी मेज पर खाना एवं पानी रखकर चली गयी। आइन्सटीन अपनी साधना में लगे रहे। उनका एक दोस्त मिलने आया। उसने देखा, आइन्सटीन अपने कार्य में लगे हुए हैं। कुछ देर बैठा रहा। उसे जोर से भूख सताने लगी। रहा नहीं गया। मेज पर रखा खाना खाया और चला गया। कुछ समय पश्चात् जब समस्या समाप्त हुई तब उन्हें भोजन का ख्याल आया। देखा भोजन के बर्तन खाली पड़े हैं और गिलास में पानी भी थोड़ा सा है। उन्हें अपने पर तरस आया। सोचा मैं भी कैसा व्यक्ति हूं। खाना खा चुका हूं पर ध्यान में है ही नहीं है। फिर अपने काम पर लग गये यह थी कार्य की तन्मयता।
परिश्रम-मनोयोग एवं ध्यान साधना (Meditate) से व्यक्ति जीवन में क्या कुछ नहीं कर सकता। कालिदास का उदाहरण सामने है। महामूर्ख समझा जाने वाला कालिदास मां सरस्वती के सामने विद्याध्ययन में जुट गया। एकाग्र साधना से विश्व में वही कालिदास महापंडित कालिदास के नाम से विख्यात हुआ।

ध्यान साधना का है महत्वपूर्ण स्थान 

छोटे से छोटे कार्य में भी लक्ष्य प्राप्ति के लिए ध्यान साधना का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। प्रचलित कथा है- एक लुहार था। वाण बनाता था। निपुण था अपने कार्य में। अन्य लुहार भी वाण बनाते थे पर उसकी प्रसिद्घि सबसे अधिक थी। उसका बनाया वाण अन्य की अपेक्षा अधिक पसंद किया जाता था। एक बार उसके  सम्बन्धी ने अपने पुत्र को वाण बनाने के लिए प्रशिक्षण के लिए उसके पास भेजा। वह उसे वाण बनाना सिखाता। पर लड़के का मन चंचल रहता। एक बार राजा की सवारी गाजे बाजे के साथ धूम-धाम से निकल रही थी। सवारी देखकर उसका आनंद लेकर वह उस लुहार के पास आया। उत्सुकतावश उससे सवारी का विवरण जानना चाहा। लुहार ने कहा- बेटा मैं तो अपने काम के ध्यान में था, मुझे जानकारी नहीं है- सवारी कब निकली। यही था उसकी प्रसिद्घि का राज।

घटना है अकबर बादशाह के समय की। दिन भर यात्रा करते हुए वे कहीं दूर निकल गये। नमाज का समय हो गया। मार्ग पर ही चद्दर बिछाकर अल्लाह के ध्यान में बैठ गये। उसी समय एक नवयुवती अपने पति की तलाश में इधर-उधर नजर डालती हुई पति की खोज में चल रही थी। उसका पति घर से सुबह निकला था- शाम तक वापस नहीं लौटा था। अपने अंग वस्त्र का भी ध्यान नहीं था उसे। सहसा बादशाह अकबर की चादर पर उसका पैर पड़ा, पर वह ध्यान दिये बिना आगे निकल गयी।

अकबर को उसकी गुस्ताखी पर क्रोध आ गया। कुछ ही देर बाद वह उस मार्ग से वापिस आयी तो अकबर कहने लगा-तुझे दिखा नहीं-मैं प्रभु भक्ति में था। तुझे क्या नजर नहीं आया? पैर रखती चली गयी? युवती ने यह सुनकर बड़े धैर्य से एक दोहा पढ़ा-

नर राची सूफी नहीं, तुम कस लख्यो सुजान।
कुरान पढ़त बौरे भयो, नहीं राच्यो रहमान॥

मैं तो अपने पति देव की खोज में गुम हो गयी थी जिससे मुझे कुछ सूझा नहीं, परंतु तुम तो प्रभु ध्यान में लीन थे तुमने मुझे कैसे देख लिया। मालूम होता है कि कुरान को पढ़कर बौरा  गये हो। भगवान में अभी प्रीति नहीं हुई है।

अकबर यह उत्तर सुनकर अवाक् रह गया। कहते हैं अकबर लम्बी सांस लेकर अक्सर यह दोहा बार-बार दोहराया करता था। इसी संदर्भ में बहुत प्रचलित रहीम का यह दोहा।

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख मांही।
मनवा तो चहुदिश फिरे, यह तो सुमिरन नांहि॥

मन लक्ष्य हीन रहकर ध्यान साधना करेगा तो कभी स्थिर नहीं रह सकेगा। ध्यान के लिए आवश्यक है-लक्ष्य उद्देश्य।

निरन्तर साधना से मिलती है सफलता 

निरन्तर साधना (Regular Meditate) से अकल्पनीय और दुरूह कार्य में भी सफलता (success) मिलती है। धैर्य, लगन और निष्ठा ध्यान साधना के आवश्यक उपकरण हैं। एक बड़ी रोचक कथा है। शिक्षण सत्र पूरा होने पर एक बार एक आचार्य ने अपने शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही। सभी शिष्यों के हाथ में बांस की टोकरियां थमा दी गयीं एवं उनसे कहा गया पास की नदी से उसमें जल भर कर लाना है और आश्रम की सफाई करनी है। सभी शिष्य टोकरी लेकर नदी किनारे गये। टोकरी में पानी भरने का प्रयास किया, पर पानी टोकरी से निकल जाता। सभी  शिष्य वापिस आश्रम आ गये। एक शिष्य दिन भर यही क्रम माला फेरने की तरह करता गया। टोकरी में पानी लगते रहने से बांस की काठियां फूल गयी एवं टोकरी के सारे छिद्र बंद हो गये। पानी गिरना बंद हो गया। टोकरी में पानी भर कर आश्रम पहुंचा और लग गया आश्रम की सफाई में। गुरू ने सभी शिष्यों को एकत्र कर उसकी लगन  और साधना की प्रशंसा की। शिष्यों को सरस्वती की माला की महत्ता का गूढ़ रहस्य समझाते हुए उन्होंने बताया कि ध्यान मग्न होकर निरंतर अभ्यास ही सफलता की कुंजी है।

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