चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस (Corona virus) का घातक संक्रमण लगभग पूरे विश्व में अपनी पहुंच बना चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आने वाले दिनों में कोरोना वायरस से संक्रमित मामलों की बढ़ने की चेतावनी भी दी है। चीन में कोरोना वायरस अब और भी डरावना हो गया है। कोरोना वायरस अब हवा के माध्यम से संचरण करने लगा है और दूसरे व्यक्ति को संक्रमित करने लगा है। इस प्रकार के संचरण को एयरोसोल ट्रांसमिशन कहा जाता है। फिलहाल कोरोना वायरस (Corona virus) से निपटने की कोई भी दवा अभी नहीं बनी है। एहतियात ही इसका बचाव है।
आयुष मंत्रालय ने दिये सुझाव
भारत के आयुष मंत्रालय की सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च हौम्योपैथी (सीसीआरएच) ने कोरोना वायरस (Corona virus) के संक्रमण से बचाव के लिये दिनचर्या और कुछ औषधियों को दैनिक उपयोग में लाने का सुझाव भी दिया है-
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिये कुछ उपाय-
- हाथों को साबुन से 20 सेकेंड तक धोना चाहिए।
- शादांग पनिया (मुस्ता, परपाट, उशीर, चंदन, उडिय़ा और नागर) संसाधित पानी (1 लीटर पानी में उबला हुआ 10 ग्राम पाउडर, जब तक यह आधा तक कम न हो जाए) का सेवन करें। इसे एक बोतल में स्टोर करें और प्यास लगने पर उपयोग करें।
- दूसरे व्यक्ति के हाथों से अपनी आंखें, नाक व मुंह छूने से बचायें।
- यदि बीमार हो जाते हैं तो घर पर ही रहें।
- खांसी या छींक के दौरान अपना चेहरा ढंक कर रखें और खांसने या छींकने के बाद अपने हाथों को अवश्य धोना चाहिए।
- कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए यात्रा या काम करते समय एक एन 95 मास्क का उपयोग अवश्य करें।
- स्वस्थ आहार लें और जीवन शैली के माध्यम से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए आवश्यक उपाय करें।
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हमारा देश हमेशा आक्रमण और संक्रमण से हमेशा लड़ा है और हर लड़ाई में विजेता ही बना है। इन सबके पीछे हमारी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर, चिकित्सा पद्धति, पुराने नुस्खे हमेशा ही कारगर साबित हुए हैं। कल-कारखाने, बढ़ती हुई जनसंख्या, धूम्रपान एवं वृक्षों के अंधाधुंध कटाव ने वायुमंडल में आक्सीजन की मात्रा घटा दी है और प्रदूषण का अनुपात बढ़ा दिया है। इसके साथ-साथ ही साथ नई बीमारियों ने भी अपना घर बनाना शुरू कर दिया है। हम क्रमशः ऐसे दल-दल में फंसते जा रहे हैं, जिसमें शुद्घ वायु का मिलना कठिन हो रहा है।
कोरोना (Corona virus) के बढ़ते संक्रमण में रोकथाम के लिये अग्निहोत्र (Agnihotra) एक कारगर उपाय
एक सर्वमान्य सिद्घांत है- ’’विषस्य विषमौषधम्’’। विष की काट दूसरा विष करता है। होम्योपैथी के सिद्घांत में तो पूरी तरह इस तथ्य को अपनाया गया है। उसमें रोगों की उत्पत्ति का कारण भी विष माना गया है और निवारण भी उसी को औषधि के रूप में देकर किया गया है। यही बात अग्निहोत्र द्वारा वायुमंडलीय विषाक्तता के शमन के संदर्भ में भी देखी गयी है। बढ़ते हुए प्रदूषण में तो अग्निहोत्र (Agnihotra) एक कारगर उपाय है ही वहीं वह कोरोना वायरस के वायुमंडल में बढ़ते प्रभाव को भी कम करने में सहायक हो सकता है। विशाल अंतरिक्ष के वायुमंडल का परिशोधन करने के लिए छोटी मात्रा में किए गए अग्निहोत्र भी काम दे सकते हैं। आवश्यक नहीं कि उतनी बड़ी ही तैयारी की जाए। बीमारियां समूचे शरीर के प्रकट और अप्रकट अवयवों में समाई होती है पर उनका निराकरण औषधि की छोटी मात्रा ही कर सकती है।
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सूक्ष्म वातावरण के परिशोधन में और कोरोना वायरस (Corona virus) के बढ़ते संक्रमण में यज्ञ-अग्निहोत्र (Agnihotra) सर्वाधिक सशक्त एवं महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है। इससे निकलने वाली दिव्य औषधियों की ऊर्जा, सूक्ष्मीकृत औषधि-धूम्र, अपने प्रभाव से वायु प्रदूषण और कोरोना वायरस के निवारण में समर्थ हो सकता है। यज्ञाग्नि को जिस वैज्ञानिक ढंग से निरंतर प्रज्जलित रखने का विधान है, उससे मात्र ऊर्जा निकलती है- धूम्र नहीं। सुगंधित, पोषक, रोग नाशक औषधियों द्वारा विनिर्मित यज्ञ-ऊर्जा वायुमंडल के विपरीत प्रभाव को समाप्त करती है। दुर्गंधित स्थानों में सुगंधित वस्तुएं जलाकर उनका परिमार्जन किया जाता है। सभी धार्मिक स्थानों में किसी न किसी रूप से सुगंधित पदार्थों का जलाना पूजा विधान का एक अंग माना जाता है। अगरबत्ती, धूपबत्ती, लोबान आदि जलाकर कमरे, मंदिर या अन्य पूजा स्थल महकाए जाते हैं। सुगंधित वातावरण में प्रवेश करने वाले प्रसन्नता अनुभव करते हैं, मानसिक उल्लास प्राप्त करते हैं।
औषधिय गुणों से युक्त होता है अग्निहोत्र (Agnihotra)
अग्निहोत्र (Agnihotra) प्रक्रिया में जब समिधाओं या हविष्य औषधियों का होम किया जाता है तो प्राप्त यज्ञ-धूम्र औषधि मिश्रित होता है। उसमें कार्बन डाई ऑक्साइड बहुत अल्प मात्रा में, उतनी ही रहती है जितनी कि याजक के मस्तिष्क के तंतुओं को उत्तेजना देने हेतु अनिवार्य है। होमी गई औषधियों के मुख्य तत्वों के अतिरिक्त क्रिओजोट, फिनॉल, एसीटिलिन, ओजोन आदि भी इस प्रक्रिया में निस्तृृत होते हैं। अग्नि के समन्वय से अग्निहोत्र (Agnihotra) प्रक्रिया में निर्मित ऊर्जा के कारण पदार्थ छोटे-छोटे कणों में विभक्त होता रहता है। यह एक प्रकार से रासायनिक विखंडन की प्रक्रिया है। इसके दो परिणाम निकलते हैं। आवेशित कण को धारण किए सूक्ष्म औषधि घटक या तो वाष्पीभूत हो जाते हैं अथवा प्रज्जवल प्रक्रिया धीमी है, अतः जो धूम्र बनते हैं वे कार्बन डाई आक्साइड एवं मोनोआक्साइड रहित होते हैं। जो गैसों की मात्रा होती है उनमें भी इथीलीन आक्साइड, प्रॉपलीन आक्साइड, फार्मल्डीहाइड एवं बीटाप्रोपिया लेक्टेन तथा एसीटिलीन का अनुपात अधिक होता है। यह वायु शोधक सम्मिश्रण है, जो वृक्ष वनस्पतियों की वृद्घि भी करता है और पर्यावरण का संशोधन-नियमन करके घातक जीवाणु-विषाणुओं जैसे कोरोना वायरस की वृद्घि रोकने में कारगर साबित हो सकता है। प्रयोग बताते हैं कि व्यापक स्तर पर किए गए ऐसे उपचार जब वायुमंडल में धूम्र के बादल बनकर पहुंचते हैं, तो बादलों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं। वायुदाब कम करके वर्षा तक उत्पन्न करने की सामर्थ्य इनमें होती है। पूना के फर्ग्युसन कॉलेज के वैज्ञानिकों ने प्रयोगोपरांत पाया है कि 63632.5 इंच गहराई के सामान्य ताम्र पात्र में आम की समिधाओं के माध्यम से सामान्य वनौषधि सम्मिश्रण से किया गया अग्निहोत्र एक बार की 108 आहुतियों से 36322310 फीट के हाल की 9००० से भी अधिक घनफुट वायु में कृत्रिम रूप से विनिर्मित धूम्र, वायु प्रदूषण समाप्त करने में सफल रहा। नियमानुसार हवा के नमूने लेकर गैस लिक्विड क्रोमेटोग्राफ पर जांचकर देखा गया है कि परीक्षित वायु पूरी तरह शुद्घ हो गई।
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गूगल, कपूर आदि पदार्थों के गुण सर्वविदित हैं। उन्हें रोगाणु वाले स्थानों में जलाया जाता है। घृत दीपक में भी यही विशेषता है। गुड़, शक्कर जलने से भी रोगकारक जीवाणुओं-विषाणुओं का ही हनन होता है, सजातीय जीवाणु नहीं मरते, जबकि एण्टीबॉयोटिक औषधियां सजातीय और विजातीय दोनों प्रकार के जीवाणुओं को मारकर नफा-नुकसान बराबर कर देती है।
अग्निहोत्र में विषैले तत्वों को नष्ट करने की विलक्षण क्षमता
यज्ञीय धूम्र में वायु के विषैले तत्वों को नष्ट करने की विलक्षण क्षमता है। प्राचीन ऋषि इस बात को अच्छी तरह जानते थे। अथर्ववेद में कहा गया है ’’वायुः अंतरिक्ष स्याधिपति’’ (5/24/8) अर्थात् वायु अंतरिक्ष का अधिपति है। वायुर्विद-अर्थात् वायु ज्ञान से संबंधित विज्ञान ही यजुर्वेद है। वेद शास्त्रों में स्थान-स्थान पर इस बात का उल्लेख किया गया है कि वायुमंडल को शुद्घ रखने के लिए अग्निहोत्र यज्ञ आवश्यक है। यज्ञ में होमी गई औषधियां केवल दूषित तत्वों, कृमि कीटकों को ही नहीं मार भगातीं वरन् पौष्टिक तत्वों का अभिवर्द्घन भी करती है।
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कोराना वायरस (Corona virus) से बचने के लिए अग्निहोत्र उसी प्रकार लाभप्रद हो सकता है जिस प्रकार बमों का विकिरण सारे संसार को पीड़ा और पागलपन की ओर धकेलता है। भारतीय संस्कृति में यज्ञीय परंपरा के पीछे समग्र वैज्ञानिक आधार है। इसका प्रमाण अब वैज्ञानिक परीक्षणों से मिल रहा है। इस पुरातन परंपरा का शुभारंभ हमें जल्द से जल्द शुरू कर देना चाहिए ताकि विश्व में दिनोदिन फैलती जा रही इस बीमारी के संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सके। ज्यादा दिनों तक न सही कम से कम विश्व के हर एक घर में सिर्फ 7 दिन लगातार अग्निहोत्र (Agnihotra) किया जाये तो हो सकता है इसके सार्थक परिणाम सामने आयें। इसके अलावा तुलसी, काली मिर्च, पिप्पली जैसी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां भी लोगों को कोरोना वायरस (Corona virus) के संक्रमण के बचने में लाभकारी हो सकती हैं।