Friday, 24 January 2020

नई व्यवस्था का विरोध कांग्रेस की मजबूरी



दिल्ली के सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिये कांग्रेस की मजबूरी देखी जा सकती है। अब प्रधानमंत्री मोदी ने वर्षों से चले आ रहे सत्ता लोलुप मुद्दों को दरकिनार करना शुरू किया तो कांग्रेस व अन्य दलों के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा। मोदी सरकार ने 2017 में ही 1200 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर ज्येडिशियली का बोझ कम किया है। उन्होंने नई व्यवस्था का सरलीकरण करने के साथ-साथ भ्रष्टाचार को भी लगभग जीरो पर लाने का प्रयास किया है। कांग्रेस या अन्य दल क्यों नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे हैं पता नहीं। किंतु यह जरूर है कि इस कानून का विरोध ‘कश्मीर में आग जल रही है’ जैसी बातों को दोहराने की कोशिश है। हम भारतीय हैं हमने कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया किंतु हमारा इतिहास यह रहा है कि हम पर सदियों से आक्रमण होते रहे हैं। चाहे वह मुगल हों या अंग्रेज। इन्होंने सबसे पहले हमारी संस्कृति पर ही हमला किया है। हमारा धन तो लूटा ही हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को भी नष्ट-भ्रष्ट किया। अब जबकि हम अपने संस्कृति को सहेजने की कोशिश कर रहे हैं तो तथाकथितों को पीड़ा हो रही है। पड़ोसी देशों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक के रूप रहकर रोजाना यातनायें झेल रहे हैं, यह उन्हें नहीं दिख रहा है। 

अब तो ऐसा लगा रहा है कि मोदी सरकार के बनाये कानूनों का विरोध भी कांग्रेस, वामपंथियों का सहारा लेकर करना चाहती है। स्वाभाविक भी है क्योंकि जिस कांग्रेस के ख्वाब में भी अब दिल्ली की सत्ता नहीं है, वह वामपंथियों के सहारे सत्ता हासिल करने की जुगाड़ में लगी हुई है। उनके पास कोई तर्क नहीं है इसलिए विवाद का सहारा लेकर भारतीय महत्व के ऐतिहासिक तथ्यों को गलत पेश कर रहे हैं। 

ऐसा लगता है कि देश को एक बार फिर प्रगति पथ पर बढ़ने से रोका जा रहा है। वर्तमान में जो लोग सीएए का विरोध कर रहे हैं उनमें से 99 प्रतिशत लोगों को मालूम ही नहीं है कि यह नागरिकता संशोधन विधेयक है क्या? ऐसे लोग राजनीतिक हितों की खातिर देश के सामने गलत तथ्यों को परोस सकते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों का वे कठपुतली की भांति खिलौने बनकर विरोध कर रहे हैं। विरोध भी कुतर्कपूर्ण। केवल इतना कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने भगवाकरण कर दिया। आखिर भगवाकरण है क्या? इस बारे में वे सभी मौन हो जाते हैं। शायद भगवाकरण का भय यह है कि भारत के ऐतिहासिक और गौरव की पुनः वापसी हो रही है। मोदी सरकार ने इसे दुरूस्त किया तो यह भगवाकरण हो गया। साफ है न तो कांग्रेस के पास बचाव में कोई तर्क है और न ही विवाद के सहारे आगे चलने वाले वामपंथियों के पास ही।
इनका लक्ष्य न तो देश को साम्प्रदायिक होने से बचाना है और न ही देश को रोजगारोंन्मुखी बनाने के पक्षधर है अपितु इनकी मंशा केवल हिन्दू समाज व हिन्दू हितों को प्रभावित करना है। उमा भारती ने एक कार्यक्रम में कहा था कि देश को अब सबसे अधिक खतरा किन्हीं से है तो वह है कांग्रेस की राजनीति और वामपंथियों की विचारधारा से। सहज शब्दों में कही गई इस बात के मायने बड़े ही गंभीर हैं। कांग्रेस सत्ता पाने के लिए वह सब कर सकती है जिसको कोई भी राष्ट्रप्रेमी करने से बचता है लेकिन कांग्रेस सत्ता में आने के बाद सुधारने की बात कहकर ऐसा कर लेती है कि जिससे देश को काफी कुछ भुगतना पड़ सकता है। पंजाब के अकालियों को कमजोर करने के लिए भिंडरावाले को जन्म कांग्रेस ही दे सकती है, कश्मीर में दो निशान और दो संविधान कांग्रेस ही मान सकती है कोई राजनीतिक दल नहीं। चरारे शरीफ में आतंकवादियों को बिरयानी की योजना कांग्रेस के पास ही हो सकती है। इसी कांग्रेस के सहारे देश में वामपंथी एक बार फिर से ताकतवर हो रहे हैं। वाम दलों की विचारधारा को लेकर विवाद है। कहते हैं जब रूस या चीन में बारिश होती है तो भारत के कम्युनिस्ट छाता लगा कर चलने लगते हैं। 
कांग्रेस को तो सत्ता चाहिए और अपने नेता को खुश करना मजबूरी हो सकती। दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस और वामपंथी इन विषयों पर चर्चा करने के बजाय अच्छे तर्क के सामने विवाद खड़ा करने की अपनी मानसिकता को सामने कर देते हैं। लेकिन तर्क से भागने वालों के खिलाफ भी अब मुहिम चलने वाली है और देश के सामने उन्हें बेनकाब किया जायेगा। 

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