आज हम 71वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। आज ही के दिन 26 जनवरी 1950 को हमारे देश में संविधान लागू हुआ था जिसके परिपेक्ष्य में बड़े उत्साह से हम इस पवित्र त्योहार को मनाते हैं। हमारे देश का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है। संविधान को लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ लागू किया गया था। गणतंत्र दिवस पर युवाओं को देश की सबसे बड़ी ताकत के रूप में देखा जा रहा है। आज भारत का युवा अपना अमूल्य योगदान देकर देश की उन्नति में सहायक की भूमिका निभा रहा है। देश आज धीरे-धीरे आतंकवाद जैसी भयानक स्थिति से बाहर निकल रहा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक शांति की लौ जल उठी है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश की नई परिकल्पना गढ़ दी है जो कि विश्व में एक अलग पहचान बना रही है। कश्मीर हो या लद्दाख, देश की मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी या अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये जीएसटी, भ्रष्टाचार पर लगाम, धार्मिक उन्मादों की समाप्ति क्या यह देश की प्रगति का सूचक नहीं हैं।
गोपाल दास नीरज की ये पंक्तियां -
मैं न बंधा हूं देश काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं न खड़ा हूं जाति-पांति की ऊंची नीची भीड़ में।
मेरा धर्म न कुछ स्याही शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूं कि प्यार है तो घर घर में राम है।
मुझसे तुम न कहो कि मंदिर, मस्जिद पर मैं सर टेक दूं
मेरा तो आराध्य आदमी देवालय हर द्वार है
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है।
हमारे लिये सही दिशा और मार्गदशक हो सकती हैं।
पिछले वर्ष जब हमने गणतंत्र दिवस मनाया था तब हमने कुछ संकल्प किये थे और आज एक वर्ष में हम उन्हें कितना पूरा करने में सफल हुए हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है। विश्व में लोकतंत्र की अपनी अलग पहचान बनाने वाले भारत में सर्वधर्म सम्भाव की परिकल्पना पर प्रहार क्यों हो रहा है, क्यों आज का युवा अपने पथ से भटकाव महसूस करने लगा है। एक तरफ तो विकसित देश की ओर अग्रसर हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महंगाई, बेरोजगारी से तार-तार हो रहे हैं। रही-सही कसर नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को लेकर बेवजह युवाओं को बरगलाने का कार्य कुछ छद्म स्वभाव के राजनीतिज्ञ कर रहे हैं। यह देश को आगे बढ़ने में रूकावट पैदा कर रही है। यह देश में दुखद स्थिति का भान करा रही है। बढ़ती जनसंख्या भी बेरोजगारी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। क्या सिर्फ यह चिल्लाने से कि जनसंख्या की अधिकता से निजात मिल सकती है, कदापि नहीं। सबसे पहले तो आवश्यक है कि सीमित परिवार के लिए आम भारतीय तक को उचित और सरल माध्यम द्वारा जागरूक करना आवश्यक है तत्पश्चात शिक्षा के प्रचार प्रसार में सरकार के साथ-साथ हमें भी अहम भूमिका निभानी होगी।
यह हमारा ही देश है कि जहां उभरती प्रतिभाएं अपने हक से वंचित हो रही हैं। कारण भी साफ है क्येांकि जो अधिकार, संसाधन हमें मिलना चाहिए उन पर शायद दूसरों ने अपना अधिकार कर लिया है। जो कि देश की उन्नति में योगदान तो दे नहीं रहे परंतु अब जबकि सरकार ने इनकी उलटी गिनती शुरू कर दी है तो यह बरगराने लगे हैं। चिल्ला रहे हैं, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और इन सबके पीछे खड़े हैं तथाकथित राजनीतिज्ञ।
समय रहते हमारे युवा समझ जायेंगे कि क्या सही है क्या गलत। तभी हमारा देश विकसित राष्ट्र बनने में तत्परता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकेगा। आवश्यकता है तो बस हमारे युवाओं को सही मार्गदर्शन देने की। युवाओं वयस्कों और वृद्धों के आपसी सामंजस्य जैसे कल्पनाशीलता, कुछ करने गुजरने का जोश और जीवन के अनुभव, यदि कदम से कदम मिलाकर चलें तो कोई शक नहीं कि हमारा देश एक विकसित राष्ट्र का सपना जल्द से जल्द पूरा कर सकेगा बल्कि हम दूसरे राष्ट्रों को भी अपना मार्गदर्शन देकर आपसी भाईचारे की मिसाल कायम कर विश्व बन्धुत्व की भावना को साकार करने की दिशा में अपना अमूल्य योगदान देकर विश्व शांति की नींव रख सकेंगे।
Jai Hind, Vande Matram
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