Friday, 14 February 2020

कैसा हो नवजात शिशु का परिपूरक भोजन

किसी भी भवन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग उसकी नींव है। यदि नींव पक्की है तो उस पर भारी संरचना खड़ी की जा सकती है। ठीक इसी प्रकार हमारे स्वास्थ्य की नींव भी हमारे शैशवकाल के दौरान रहे आहार एवं पोषण के आधार पर पड़ जाती है। इसलिए शैशवावस्था में शिशु की देखभाल पर अधिक महत्व दिया जाता है।

शिशु के पोषण का माप करने का सबसे अच्छा तरीका है उसका वजन लेते रहना। शिशु के जन्म लेते ही उसका भार लिया जाता है प्राय: नवजात शिशु का वजन तीन किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम तक रहता है। प्रारंभिक तीन दिनों में उसका वजन घटता है, किंतु उसके उपरांत 5 से 6 माह की अवस्था तक प्रति सप्ताह 350 से 500 ग्राम तक वजन बढ़ता रहता है। एक साल की उम्र में 15 दिन में तथा दूसरे वर्ष के दौरान महीने में एक बार वजन लिया जाना चाहिए। जिससे बच्चे के शरीर की वृद्घि का पता लगता रहे।

जीवन के पहले और दूसरे वर्ष के दौरान बच्चे की देखभाल करने वालों को उसके पोषण और संक्रमण से बचाव वाले पहलुओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए। शिशुओं के प्रथम वर्ष के दौरान पोषण का मुख्य स्तोत दूध ही होता है।

स्तनपान: 

शिशु के लिए माता का दूध अमृतोपम होता है। नवजात शिशु के लिए जितना अधिक लाभदायक एवं पौष्टिक मां का दूध सिद्घ होता है, उतनी संसार में कोई अन्य वस्तु नहीं होती है। शिशु के जन्म के बाद माता को 2-3 दिन तक दूध के रूप में गाढ़ा सफेद पदार्थ उतरता है। 

इसका सेवन शिशु को अवश्य कराना चाहिए। इससे शिशु में रोगों  के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होती है। माता के दूध में पोषण की अद्भूत क्षमता होती है। इसमें शिशु की वृद्घि के लिए आवश्यक सभी पदार्थ-प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइडे्रट, खनिज लवण  (मुख्यत: कैल्शियम और फॉस्फोरस) जल तथा विटामिन विशेषत: विटामिन 'डी'   आदि प्राप्त होते हैं।

शिशु को 6 माह तक माता के दूध के अतिरिक्त और कोई दूध नहीं पिलाना चाहिए। इसके उपरांत दूध अपर्याप्त होने लगता है और शिशु के पोषण के लिए ऊपरी परिपूरक भोज्य पदार्थो की भी आवश्यकता होती है। शिशु के लिए गाय एवं बकरी का दूध भी लाभदायक होता है। गाय के दूध में माता के दूध से दुगनी प्रोटीन होती है तथा शक्कर कम होती है।

गाय के दूध को माता के दूध के अनुरूप बनाने हेतु 30 से 45 ग्राम दूध में बराबर का पानी व चौथाई चम्मच चीनी डालकर एवं उबाल देकर  दूध को पीने योग्य ठंडा कर लिया जाता है। बकरी के दूध में एक तिहाई पानी मिलाकर उबाल लेना चाहिए। गाय के दूध  से प्राय: बच्चे को अपाचन हो जाता है, अत: इसके साथ फलों का रस भी देना आवश्यक है। 
इस मिश्रण में दूध और पानी का अनुपात आयु बढऩे के साथ-साथ परिवर्तित हो जाता है।

परिपूरक पौष्टिक पदार्थो की आवश्यकता व प्राप्ति

जब शिशु 6-7 माह का होता है तब उसके बढ़ते हुए शरीर के विकास के लिए अन्य पौष्टिक पदार्थों की भी आवश्यकता होती है।

1. सूर्य प्रकाश से विटामिन  'डी'  की प्राप्ति: 

शिशु के आहार में विटामिन 'डी' का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी कमी से शरीर में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस सम्मिश्रण भली प्रकार नहीं होता है। विटामिन 'डीÓ   की प्राप्ति का सरल एवं प्राकृतिक साधन  'धूप सेवन'  है। सूर्य की किरणों द्वारा यह तत्व प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता है। अत: बालक की जैतून तेल से मालिश कर धूप में कुछ देर लिटाना लाभदायक होता है।

2. विटामिन 'सी'  युक्त पदार्थ: 

शिशु को 3 माह का होने के पश्चात दांतों  व मसूड़ों की पुष्टता, स्कर्बी जैसे रोगों से बचाने के लिए विटामिन  'सी' की आवश्यकता होती है। अत: इसके लिए संतरे आदि का रस देना चाहिए।

3. विटामिन  'ए' : 

माता व गाय के दूध में विटामिन 'ए'   पाये जाते हैं किंतु शरीर की उचित रूप से वृद्घि के लिए इसकी अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। यह विटामिन पशु प्रदत्त वसा जैसे-घी, दूध, दही, अण्डा, मांस, मछली के तेल आदि में अधिक पाया जाता है। गाजर, टमाटर, सलाद, गोभी, लहसुन तथा अन्य हरी पत्ती वाली सब्जियों में केला, आम, पपीता आदि फलों में किरोटिन नामक विटामिन पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

4. लौहयुक्त पदार्थ: 

बच्चों के रक्त की स्वस्थता स्थिर रखने के लिए लोहा अत्यन्त आवश्यक होता है। यह रक्त में लाल कोशिकाओं का निर्माण करता है तथा हीमोग्लोबिन का मुख्य अंग होता है। इसकेे मुख्य स्त्रोत जिगर, कलेजी, मछली, अंडे की जर्दी, गाजर, पालक, खीरे, अनार के दाने, सेब, मेवे, प्याज, जैतून तेल, हरी सब्जियां आदि हैं। इनका समावेश बालक के भोजन में अवश्य होना चाहिए।

5. कैल्शियम: 

यह हड्डी एवं दांतों को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। 9 वर्ष तक के बच्चों को लगभग 1 ग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है। इसे दूध, पनीर, बादाम, अंडे की जर्दी, अंजीर, केला, हरी सब्जी आदि के रूप में बच्चे को  दिया जा सकता है।

6. अन्नयुक्त ठोस पदार्थ: 

शिशु को 6-7 माह में ठोस आहार भी क्रमश:थोड़ा-थोड़ा देना चाहिए। इसमें 8-9 माह में दूध छुड़ाने में कठिनाई नहीं होती है।

परिपूरक भोजन तैयार करने व खिलाने की विधि

अ. ठोस पदार्थ: 

शिशु को अधिक प्रोटीनयुक्त भोजन देने के लिए उसे 6वें माह से  अन्न दिया जाता है। शिशु को सरलता से पचने वाला अन्न ही देना चाहिए। इस दृष्टि से उसे दूध दलिया, दाल दलिया, दूध केला (एक दाना इलायची के साथ), दूध कार्नफलेक्स, अण्डा-बे्रड, सूजी और चावल की खीर, मक्के का दलिया, साबूदाने की खीर आदि भोजन के रूप में दिया जा सकता है। 

ब. हरी शाक सब्जी: 

हरी शाक सब्जी द्वारा बच्चे के शरीर में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों का प्रवेश होता है। चुकन्दर, गाजर, परवल, लौकी आदि लाभकारी हैं। पालक और टमाटर को उबालकर, छानकर दिया जाना चाहिए। इनसब्जियों को महीन काटकर, धोकर, थोड़ा पानी में उबाला जाता है। पकने पर उसे मसलकर, छानकर बच्चे को पिलाया जाता है।

स. आलू: 

जब शिशु 10 माह का हो जाय तो उसे सप्ताह में तीन बार आग में भूनकर व कुचलकर 2 चम्मच आलू दिया जाना चाहिए। परंतु यह हरी सब्जी खिलाने के बाद देना ही उचित होगा।
द.फल: 10वें माह में सेब का रस तथा भुना हुआ सेब कुचलकर दिया जा सकता है। हल्की आंच पर थोड़े से पानी में गलाकर खुबानी, अंजीर आदि फल खिलाना उत्तम होता है।

इस प्रकार से प्रथम दो वर्षों में शिशु के भोजन में सभी पोषक तत्वों का समावेश होना आवश्यक है, क्योंकि उसी के आधार पर बच्चे की भोजन संबंधी आदतों का निर्माण होता है। इसीलिए उसे शुरू से सभी प्रकार के भोज्य पदार्थो का सेवन कराना चाहिए ताकि आगे जाकर शिशु को किसी भी प्रकार का संक्रमण या किसी विशेष पोषक तत्व की कमी से होने वाले रोगों से बचाया जा सके।

इन  सभी पोषक तत्वों के नियमित सेवन तथा उचित मात्रा में सेवन करने से बालक के शरीर में रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।  

मूलत: यदि बालक का खान-पान ठीक है तो उसका शरीर स्वस्थ  रहता है और यदि शरीर स्वस्थ है तो उसका व्यक्तित्व भी उत्तम रहेगा।

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